ख़ुदी का राज़
मैं अपने आप को रोकूँ कहाँ तक
सीने से दिल निकाल के हाथों पे रख दिया
जब जब तुम को याद करें हम
किसी को याद करने के नहीं मख़्सूस कुछ लम्हे
आधी मोहब्बत
च्यूंटियाँ
संग-दिल
महव-ए-रक़्स-ए-विसाल था क्या था
कितने आलम गुज़र गए मुझ पर
यौम-ए-मज़दूर
हवा का रंग नहीं है मगर मिज़ाज तो है