ब-ज़ाहिर ख़ूबसूरत हैं
तकल्लुम का तरीक़ा भी बहुत उम्दा सा उन का
बदन पर डाल कर पोशाक महँगे दाम वाली वो
समझते हैं निगाहों की हवस भी ढाँप ली हम ने
मगर वो जानते कब हैं
हवस का जिस्म नंगा है
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यौम-ए-मज़दूर
अपनी आँखें नहीं जलाऊंगी
मैं जल गई हूँ धूप की किरनों से जा-ब-जा
ला-इल्मी
सीने से दिल निकाल के हाथों पे रख दिया
अपनी आँखों को नोच डाला है
ज़िंदगी से मिले हुए हो तुम
क़ैद कर लो मुझे ख़यालों में
ये मुख़्तसर सी शिकन क्या बताएगी तुम को
महव-ए-रक़्स-ए-विसाल था क्या था
तुम को खोया था एक लग़्ज़िश में