चाँद जैसा है
आशिक़ों का इश्क़
पूरा होते ही घटने लगता है
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अपनी आँखें नहीं जलाऊंगी
दिल की उदासियों का कोई सबब नहीं है
यूँ तो मोहब्बतों में बड़ी क़ुर्बतें रहीं
यौम-ए-मज़दूर
जब जब तुम को याद करें हम
मैं अपने आप को रोकूँ कहाँ तक
हलचल
सीने से दिल निकाल के हाथों पे रख दिया
चाँद जैसा इश्क़
सुकूत-ए-शहर-ए-दिल की बेबसी को भी कोई समझे
ज़िंदगी से मिले हुए हो तुम
कितने आलम गुज़र गए मुझ पर