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साक़ी नामा - नज़्म तबा-तबाई कविता - Darsaal

साक़ी नामा

नहीं ये अहद और है साक़ी

अहल-ए-यूरोप का दौर है साक़ी

की है कोशिश उन्हों ने ख़ातिर-ख़्वाह

पाई है मुद्दतों में हिन्द की राह

कर के ज़हमत जो आए इतनी दूर

महज़ तरवीज-ए-बादा थी मंज़ूर

जो मुसलमाँ हैं उम्मत-ए-अंग्रेज़

मय-कशी से उन्हें नहीं परहेज़

बादा-ख़्वारी का शग़्ल घर घर है

और ताड़ी तो शीर-ए-मादर है

पहले पासी चमार पीते थे

मरदुम-ए-बे-वक़ार पीते थे

अब तो अहल-ए-उलूम पीते हैं

माहियान-ए-रुसूम पीते हैं

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In Hindi By Famous Poet Nazm Tabaa-tabaa.ii. is written by Nazm Tabaa-tabaa.ii. Complete Poem in Hindi by Nazm Tabaa-tabaa.ii. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.