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नुज़ूल-ए-वहइ - नज़्म तबा-तबाई कविता - Darsaal

नुज़ूल-ए-वहइ

क़दम चालीसवीं मंज़िल में उस यूसुफ़ ने जब रक्खा

तो पहुँचा कारवान-ए-वहइ आवाज़-ए-जरस हो कर

कि दिल तो जाग उठा आँखों में ग़फ़लत नींद की छाई

हुआ सीने में इस से मौजज़न इक लुज्जा-ए-इरफ़ाँ

कि ताब इस जज़्र-ओ-मद की फ़ितरत-ए-इंसाँ नहीं लाई

बढ़ा जोश इस का बढ़ कर साहिल-ए-अफ़्लाक तक पहुँचा

उठी मौज इस से उठ कर अर्श की ज़ंजीर खड़काई

झरोका अर्श का रूहुल-क़ुदुस ने खोल कर देखा

तो निकला मुद्दतों का रब्त बरसों की शनासाई

हुईं जारी ज़बाँ पर आयतें वो नूर की जिस पर

फ़िदा हो लहन-ए-दाऊदी-ओ-अन्फ़ास-ए-मसीहाई

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In Hindi By Famous Poet Nazm Tabaa-tabaa.ii. is written by Nazm Tabaa-tabaa.ii. Complete Poem in Hindi by Nazm Tabaa-tabaa.ii. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.