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यूँ मैं सीधा गया वहशत में बयाबाँ की तरफ़ - नज़्म तबा-तबाई कविता - Darsaal

यूँ मैं सीधा गया वहशत में बयाबाँ की तरफ़

यूँ मैं सीधा गया वहशत में बयाबाँ की तरफ़

हाथ जिस तरह से आता है गरेबाँ की तरफ़

बैठे बैठे दिल-ए-ग़म-गीं को ये क्या लहर आई

उठ के तूफ़ान चला दीदा-ए-गिर्यां की तरफ़

देखना लाला-ए-ख़ुद-रौ का लहकना साक़ी

कोह से दौड़ गई आग बयाबाँ की तरफ़

रो दिया देख के अक्सर मैं बहार-ए-शबनम

हँस दिया देख के अक्सर गुल-ए-ख़ंदाँ की तरफ़

बात छुपती नहीं पड़ती हैं निगाहें सब की

उस के दामन की तरफ़ मेरे गरेबाँ की तरफ़

सैकड़ों दाग़-ए-गुनह धो गए रहमत से तिरी

क्या घटा झूम के आई थी गुलिस्ताँ की तरफ़

चश्म-ए-आईना परेशाँ-नज़री सीख गई

देखता था ये बहुत ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ की तरफ़

सर झुकाए हुए है 'नज़्म' बसान-ए-ख़ामा

सम्त सज्दे की है तेरी ख़त-ए-फ़रमाँ की तरफ़

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In Hindi By Famous Poet Nazm Tabaa-tabaa.ii. is written by Nazm Tabaa-tabaa.ii. Complete Poem in Hindi by Nazm Tabaa-tabaa.ii. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.