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किसी से बस कि उमीद-ए-कुशूद-ए-कार नहीं - नज़्म तबा-तबाई कविता - Darsaal

किसी से बस कि उमीद-ए-कुशूद-ए-कार नहीं

किसी से बस कि उमीद-ए-कुशूद-ए-कार नहीं

मुझे अजल के भी आने का ए'तिबार नहीं

जवाब नामे का क़ासिद मज़ार पर लाया

कि जानता था उसे ताब-ए-इंतिज़ार नहीं

ये कह के उठ गई बालीं से मेरी शम-ए-सहर

तमाम हो गई शब और तुझे क़रार नहीं

जो तू हो पास तो हूर-ओ-क़ुसूर सब कुछ हो

जो तू नहीं तो नहीं बल्कि ज़ीनहार नहीं

ख़िज़ाँ के आने से पहले ही था मुझे मा'लूम

कि रंग-ओ-बू-ए-चमन का कुछ ए'तिबार नहीं

ग़ज़ल कही है कि मोती पिरोए हैं ऐ 'नज़्म'

वो कौन शे'र है जो दुर्र-ए-शाहवार नहीं

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In Hindi By Famous Poet Nazm Tabaa-tabaa.ii. is written by Nazm Tabaa-tabaa.ii. Complete Poem in Hindi by Nazm Tabaa-tabaa.ii. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.