नज़्म तबा-तबाई कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का नज़्म तबा-तबाई
नाम | नज़्म तबा-तबाई |
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अंग्रेज़ी नाम | Nazm Tabaa-tabaa.ii |
जन्म की तारीख | 1854 |
मौत की तिथि | 1933 |
जन्म स्थान | Lucknow |
यूँ मैं सीधा गया वहशत में बयाबाँ की तरफ़
ये दिल की बे-क़रारी ख़ाक हो कर भी न जाएगी
उड़ाई ख़ाक जिस सहरा में तेरे वास्ते मैं ने
उड़ के जाती है मिरी ख़ाक इधर गाह उधर
तू ने तो अपने दर से मुझ को उठा दिया है
सहर को उठते हैं वो देख कर कफ़-ए-रंगीं
रोज़-ए-सियह में साथ कोई दे तो जानिए
नज़र कहीं नहीं अब आते हज़रत-ए-नासेह
नशा में सूझती है मुझे दूर दूर की
मिरी बातों में क्या मालूम कब सोए वो कब जागे
लोटते रहते हैं मुझ पर चाहने वालों के दिल
किया है उस ने हर इक से विसाल का वादा
काबा ओ बुत-ख़ाना आरिफ़ की नज़र से देखिए
जो अहल-ए-दिल हैं अलग हैं वो अहल-ए-ज़ाहिर से
दिल इस तरह हवा-ए-मोहब्बत में जल गया
दर्द-ए-दिल से इश्क़ के बे-पर्दगी होती नहीं
बिछड़ के तुझ से मुझे है उमीद मिलने की
असीरी में बहार आई है फ़रियाद-ओ-फ़ुग़ाँ कर लें
अपनी दुनिया तो बना ली थी रिया-कारों ने
शिरकत-ए-महफ़िल
साक़ी नामा
नुज़ूल-ए-वहइ
जोश-ए-गुल
गोर-ए-ग़रीबाँ
यूँ तो न तेरे जिस्म में हैं ज़ीनहार हाथ
यूँ मैं सीधा गया वहशत में बयाबाँ की तरफ़
ये हुआ मआल हुबाब का जो हवा में भर के उभर गया
ये आह-ए-बे-असर क्या हो ये नख़्ल-ए-बे-समर क्या हो
उड़ा कर काग शीशे से मय-ए-गुल-गूँ निकलती है
तन्हा नहीं हूँ गर दिल-ए-दीवाना साथ है