धूल से राह अटी हो गई मंज़िल मादूम
धूल से राह अटी हो गई मंज़िल मादूम
क्या ख़बर क्या है मिरे अज़्म-ए-सफ़र का मक़्सूम
जिस्म आलूदा-ए-इस्याँ है मगर रूह मिरी
कितनी पाकीज़ा नज़र आती है कितनी मासूम
ढूँढ कर लाओ कोई हादिसा-ए-क़ल्ब-ओ-नज़र
शायद आईना हो यूँ ज़ीस्त का मख़्फ़ी मफ़्हूम
तिरे पैकर की झलक दौलत-ए-आलम वर्ना
रंग और नूर के इस सैल की वक़अत मालूम
सूरत-ए-हर्फ़-ए-ग़लत मिट गए हम ता कि सदा
लौह-ए-दुनिया पे रहे नाम तुम्हारा मर्क़ूम
जुरअत-ए-जौर-ओ-सितम कब थी किसी में 'नाज़िश'
ख़ुद मिरे हाथों रही है मिरी हस्ती मज़लूम
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