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तिरे कानों में कोई बात बतानी थी हमें - नाज़िर वहीद कविता - Darsaal

तिरे कानों में कोई बात बतानी थी हमें

तिरे कानों में कोई बात बतानी थी हमें

दिल में सखियों के तिरी आग लगानी थी हमें

हमें बाज़ार ने ठुकराया तो घर लौटे हैं

इक मोहब्बत तो बहर-ए-हाल निभानी थी हमें

चाँदनी आप की आँखों में भली लगती है

हो इजाज़त तो ज़रा उम्र बितानी थी हमें

रंग दरकार थे हम को तिरी ख़ामोशी के

एक आवाज़ की तस्वीर बनानी थी हमें

हमें सिगरेट भी तो पीनी थी निकल कर घर से

अपनी उँगली पे ये दुनिया भी नचानी थी हमें

तज़्किरा इस का नहीं इश्क़ बचाया किस ने

मसअला ये था कि अब जान बचानी थी हमें

आज हम उस के दुपट्टे की महक से हैं बंधे

वही लड़की जो कभी दुश्मन-ए-जानी थी हमें

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In Hindi By Famous Poet Nazir Wahid. is written by Nazir Wahid. Complete Poem in Hindi by Nazir Wahid. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.