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इस नए ग़म से किनारा भी तो हो सकता है - नाज़िर वहीद कविता - Darsaal

इस नए ग़म से किनारा भी तो हो सकता है

इस नए ग़म से किनारा भी तो हो सकता है

इश्क़ फिर हम को दोबारा भी तो हो सकता है

आप अंदाज़ा लगाते रहें बस जुगनू का

मिरी मुट्ठी में सितारा भी तो हो सकता है

क्या ज़रूरी है कि ये जान लुटा दी जाए

उस की यादों पे गुज़ारा भी तो हो सकता है

दिल की बस्ती से सर-ए-शाम जो उट्ठा है धुआँ

अच्छे मौसम का इशारा भी तो हो सकता है

आप को हम से मोहब्बत भी तो हो सकती है

और मोहब्बत में ख़सारा भी तो सकता है

ये जो फैला है फ़लक तक शब-ए-हिज्राँ का ग़ुबार

मिरी वहशत का नज़ारा भी तो हो सकता है

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In Hindi By Famous Poet Nazir Wahid. is written by Nazir Wahid. Complete Poem in Hindi by Nazir Wahid. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.