Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_e59f57458e682f0b013daa045be03611, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
फ़सील-ए-जाँ पे रक्खी थी न बाम-ओ-दर पे रक्खी थी - नाज़िर सिद्दीक़ी कविता - Darsaal

फ़सील-ए-जाँ पे रक्खी थी न बाम-ओ-दर पे रक्खी थी

फ़सील-ए-जाँ पे रक्खी थी न बाम-ओ-दर पे रक्खी थी

ज़माने भर की बे-ख़्वाबी मिरे बिस्तर पे रक्खी थी

उभर आई थी पेशानी पे नक़्श-ए-मो'तबर बन कर

पुरानी फ़िक्र की ख़ुश्बू नए मंज़र पे रक्खी थी

नज़र उट्ठी तो बस हैरत से हम देखा किए उस को

हमारी गुम-शुदा दस्तार उस के सर पे रक्खी थी

उसी को ज़ख़्म देने पर तुला था सर-फिरा सूरज

मिरी तख़्ईल की बुनियाद जिस शहपर पे रक्खी थी

ज़मीं पर रौशनी आती रही जाती रही लेकिन

हमारी ख़ाना-वीरानी बस इक मेहवर पे रक्खी थी

पसीना मेरी मेहनत का मिरे माथे पे रौशन था

चमक लाल-ओ-जवाहर की मिरी ठोकर पे रक्खी थी

मिरे सर पर मुसलसल आग बरसाता रहा सूरज

न जाने कैसी ठंडक मेरी चश्म-ए-तर पे रक्खी थी

मिरी गर्दन जो ज़ीनत बन चुकी थी क़त्ल-गाहों की

कभी नेज़े पे रक्खी थी कभी ख़ंजर पे रक्खी थी

बदल कर पैरहन क़दमों के नीचे आ गई 'नाज़िर'

वही मिट्टी जो इक दिन दस्त-ए-कूज़ा-गर पे रक्खी थी

(386) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Nazir Siddiqi. is written by Nazir Siddiqi. Complete Poem in Hindi by Nazir Siddiqi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.