है दर्द में डूबी हुई तहरीर की आवाज़
है दर्द में डूबी हुई तहरीर की आवाज़
विज्दान को छू लेती है तस्वीर की आवाज़
तन्हाई में आँखों से निकल आते हैं आँसू
गोया है फ़ज़ा में किसी दिल-गीर की आवाज़
दीवाना-ए-हस्ती के लिए एक हैं दोनों
पाज़ेब की झंकार कि शमशीर की आवाज़
याद आया है जब सानेहा ज़िंदान-ए-बला का
उभरी दर-ओ-दीवार से ज़ंजीर की आवाज़
लग जाती है जब राह-ए-पुर-असरार में ठोकर
हम उस को समझ लेते हैं तक़दीर की आवाज़
तख़रीब-पसंदों ने वो तूफ़ान उठाया
इस शोर में खो जाए न ता'मीर की आवाज़
नग़्मों का असर होता है अर्बाब-ए-तरब पर
'नाज़िर' को रुला देती है ज़ंजीर की आवाज़
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