कितनी वीरान है गली दिल की
दूर तक कोई नक़्श-ए-पा भी नहीं
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इक़तिज़ा वक़्त का जो चाहे करा ले वर्ना
बड़ी तमन्ना है जाऊँ सू-ए-सितम किसी दिन
ये दौड़-धूप ब-हर-सुब्ह-ओ-शाम किस के लिए
वो एक पल को मुझे इतना सच लगा था कि बस
अपनी संजीदा तबीअत पे तो अक्सर 'नाज़िम'
बड़े क़लक़ की बात है कि तुम इसे न पढ़ सके