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अश्क चश्म-ए-बुत-ए-बे-जाँ से निकल सकता है - नाज़िम बरेलवी कविता - Darsaal

अश्क चश्म-ए-बुत-ए-बे-जाँ से निकल सकता है

अश्क चश्म-ए-बुत-ए-बे-जाँ से निकल सकता है

आह-ए-पुर-सोज़ से पत्थर भी पिघल सकता है

अपने अंदाज़-ए-तकल्लुम को बदल दे वर्ना

मेरा लहजा भी तिरे साथ बदल सकता है

लोग कहते थे कि फलता नहीं नफ़रत का शजर

हम को लगता है कि इस दौर में फल सकता है

मेरे सीने में मोहब्बत की तपिश बाक़ी है

मेरी साँसों से तिरा हुस्न पिघल सकता है

चाँद की चाह में उड़ते हुए पंछी की तरह

दिल भी नादाँ है किसी शय पे मचल सकता है

जज़्बा-ए-इश्क़ से रौशन है मिरा दिल 'नाज़िम'

ये दिया तेज़ हवाओं में भी जल सकता है

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In Hindi By Famous Poet Nazim Barelvi. is written by Nazim Barelvi. Complete Poem in Hindi by Nazim Barelvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.