रात से शिकायत क्या बस तुम्हीं से कहना है
तुम ज़रा ठहर जाओ रात कब ठहरती है
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Rahat Indori
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Gulzar
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
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हवस की आग बुझी दिल की तिश्नगी है वही
आए तो दिल था बाग़ बाग़ और गए तो दाग़ दाग़
किस क़ुव्वत-ए-बे-दर्द का इज़हार है दुनिया
चश्म-ए-नम कुछ भी नहीं और शेर-ए-तर कुछ भी नहीं
ये जो इंसाँ ख़ुदा का है शहकार
जिस दर्जा नेक होने की मिलती रही है दाद
जिन के गुनाह मेरी नज़र से निहाँ नहीं
लज़्ज़त-ए-ख़्वाब दे गए हुस्न-ए-ख़याल दे गए
आँखों में बे-रुख़ी नहीं दिल में कशीदगी नहीं
ख़ुद-फ़रेबी ने बे-शक सहारा दिया और तबीअ'त ब-ज़ाहिर बहलती रही
किसी की मेहरबानी से मोहब्बत मुतमइन क्या हो