हम से शिकायतें बजा हम को भी है मगर गिला
पहले से हम नहीं अगर पहले से आप भी नहीं
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Ahmad Faraz
Rahat Indori
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ये जो इंसाँ ख़ुदा का है शहकार
अभी से वो दामन छुड़ाने लगे हो
चश्म-ए-नम कुछ भी नहीं और शेर-ए-तर कुछ भी नहीं
लज़्ज़त-ए-ख़्वाब दे गए हुस्न-ए-ख़याल दे गए
और ही वो लोग हैं जिन को है यज़्दाँ की तलाश
किसी की मेहरबानी से मोहब्बत मुतमइन क्या हो
रात से शिकायत क्या बस तुम्हीं से कहना है
आँखों में बे-रुख़ी नहीं दिल में कशीदगी नहीं
बदल गई है कुछ ऐसी हवा ज़माने की
किस क़ुव्वत-ए-बे-दर्द का इज़हार है दुनिया
जिस दर्जा नेक होने की मिलती रही है दाद