और ही वो लोग हैं जिन को है यज़्दाँ की तलाश
मुझ को इंसानों की दुनिया में है इंसाँ की तलाश
Allama Iqbal
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Gulzar
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हवस की आग बुझी दिल की तिश्नगी है वही
रात से शिकायत क्या बस तुम्हीं से कहना है
बदल गई है कुछ ऐसी हवा ज़माने की
किसी की मेहरबानी से मोहब्बत मुतमइन क्या हो
आँखों में बे-रुख़ी नहीं दिल में कशीदगी नहीं
जो लोग मौत को ज़ालिम क़रार देते हैं
ये जो इंसाँ ख़ुदा का है शहकार
लज़्ज़त-ए-ख़्वाब दे गए हुस्न-ए-ख़याल दे गए
ख़ुद-फ़रेबी ने बे-शक सहारा दिया और तबीअ'त ब-ज़ाहिर बहलती रही
जिस दर्जा नेक होने की मिलती रही है दाद