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चश्म-ए-नम कुछ भी नहीं और शेर-ए-तर कुछ भी नहीं - नज़ीर सिद्दीक़ी कविता - Darsaal

चश्म-ए-नम कुछ भी नहीं और शेर-ए-तर कुछ भी नहीं

चश्म-ए-नम कुछ भी नहीं और शेर-ए-तर कुछ भी नहीं

अब यहाँ ख़ून-ए-जिगर नक़्श-ए-हुनर कुछ भी नहीं

है सभी कुछ मेहरबाँ ना-मेहरबाँ लफ़्ज़ों का फेर

ज़िंदगी में मो'तबर ना-मो'तबर कुछ भी नहीं

दिल से दिल को राह कैसी है ये हुस्न-ए-इत्तिफ़ाक़

वर्ना दुनिया में मोहब्बत का असर कुछ भी नहीं

जिस हुनर को लोग समझेंगे कभी लाल-ओ-गुहर

आज के बाज़ार में ऐसा हुनर कुछ भी नहीं

अहल-ए-ईमाँ का अक़ीदा है ख़ुदा के बाब में

है वही सब कुछ जो ता-हद्द-ए-नज़र कुछ भी नहीं

अपने अपने फ़ाएदे की जंग जारी है यहाँ

चश्म-ए-बीना में निज़ाम-ए-ख़ैर-ओ-शर कुछ भी नहीं

ऐ सुकूत-ए-ला-मकाँ में बैठने वाले बता

क्या जहान-ए-चार-सू का शोर-ओ-शर कुछ भी नहीं

हर तरफ़ से ज़ुल्मतों का एक सैल-ए-बे-ईमाँ

इस जहाँ में हासिल-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र कुछ भी नहीं

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In Hindi By Famous Poet Nazeer Siddiqui. is written by Nazeer Siddiqui. Complete Poem in Hindi by Nazeer Siddiqui. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.