चश्म-ए-नम कुछ भी नहीं और शेर-ए-तर कुछ भी नहीं
चश्म-ए-नम कुछ भी नहीं और शेर-ए-तर कुछ भी नहीं
अब यहाँ ख़ून-ए-जिगर नक़्श-ए-हुनर कुछ भी नहीं
है सभी कुछ मेहरबाँ ना-मेहरबाँ लफ़्ज़ों का फेर
ज़िंदगी में मो'तबर ना-मो'तबर कुछ भी नहीं
दिल से दिल को राह कैसी है ये हुस्न-ए-इत्तिफ़ाक़
वर्ना दुनिया में मोहब्बत का असर कुछ भी नहीं
जिस हुनर को लोग समझेंगे कभी लाल-ओ-गुहर
आज के बाज़ार में ऐसा हुनर कुछ भी नहीं
अहल-ए-ईमाँ का अक़ीदा है ख़ुदा के बाब में
है वही सब कुछ जो ता-हद्द-ए-नज़र कुछ भी नहीं
अपने अपने फ़ाएदे की जंग जारी है यहाँ
चश्म-ए-बीना में निज़ाम-ए-ख़ैर-ओ-शर कुछ भी नहीं
ऐ सुकूत-ए-ला-मकाँ में बैठने वाले बता
क्या जहान-ए-चार-सू का शोर-ओ-शर कुछ भी नहीं
हर तरफ़ से ज़ुल्मतों का एक सैल-ए-बे-ईमाँ
इस जहाँ में हासिल-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र कुछ भी नहीं
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