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ज़ख़्म-ए-उल्फ़त अयाँ नहीं होता - नज़ीर रामपुरी कविता - Darsaal

ज़ख़्म-ए-उल्फ़त अयाँ नहीं होता

ज़ख़्म-ए-उल्फ़त अयाँ नहीं होता

आँख से ख़ूँ रवाँ नहीं होता

हुस्न को सिर्फ़ वहम है वर्ना

इश्क़ तो बद-गुमाँ नहीं होता

कोई मंज़िल भला क़दम चूमे

अज़्म जब तक जवाँ नहीं होता

देखिए तो नक़ाब उलट के ज़रा

चाँद कब तक अयाँ नहीं होता

देख कर ग़म-ज़दा से कुछ चेहरे

दर्द-ए-दिल क्यूँ अयाँ नहीं होता

कोह-ओ-सहरा हो दश्त-ए-ऐमन हो

गुज़र अपना कहाँ नहीं होता

फूल कैसे वहाँ न ख़ार लगें

ज़िक्र तेरा जहाँ नहीं होता

मैं तो क्या दिल भी मेरा उस का है

जो कभी मेहरबाँ नहीं होता

ज़ोर-ए-तूफ़ाँ है दूर साहिल है

नाख़ुदा मेहरबाँ नहीं होता

राज़-दाँ किस को किस तरह समझूँ

राज़-ए-दिल तो बयाँ नहीं होता

शेरियत शे'र में हो कैसे 'नज़ीर'

ज़ेहन जब तक रवाँ नहीं होता

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In Hindi By Famous Poet Nazeer Rampuri. is written by Nazeer Rampuri. Complete Poem in Hindi by Nazeer Rampuri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.