वो नहीं है तो ज़िंदगी कैसी
वो नहीं है तो ज़िंदगी कैसी
इस अँधेरे में रौशनी कैसी
दिल की बर्बादियों के मातम पर
ज़ेर-ए-लब है तिरे हँसी कैसी
कौन रह रह के याद आता है
दिल में रहती है बेकली कैसी
सोज़-ए-दिल ने बदन जला डाला
फिर मिरे रुख़ पे ताज़गी कैसी
हम-सफ़र हो के कारवाँ लौटा
रहबरी में ये रहज़नी कैसी
मुझ को एहसास-ए-आसमाँ न रहा
छाँव ज़ुल्फ़ों की थी घनी कैसी
मुझ से बर्बाद-ए-इश्क़ पर ऐ दोस्त
महव-ए-हैरत हूँ बरहमी कैसी
रस्म-ए-दुनिया अजीब है यारो
ग़म ही ग़म है यहाँ ख़ुशी कैसी
दिल की दुनिया तबाह कर डाली
ये शरारत ये दिल-लगी कैसी
किस की नज़रों में आ गया मैं 'नज़ीर'
मेरे शे'रों में नग़्मगी कैसी
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