हिज्र की शब में बयाँ किस से मैं रूदाद करूँ
हिज्र की शब में बयाँ किस से मैं रूदाद करूँ
उन का पर्दा भी रखूँ अपनी भी फ़रियाद करूँ
आह-ओ-नाला न करूँ और न फ़रियाद करूँ
सोचता हूँ मैं उन्हें किस तरह अब याद करूँ
महफ़िल-ए-ग़ैर में वो मुझ को मिलें तो ऐ दिल
किस तरह ज़िक्र तिरा ऐ दिल-ए-नाशाद करूँ
मा-सिवा तेरे नज़र में कोई जचता ही नहीं
ख़ाना-ए-दिल में तुझे क्यूँ न मैं आबाद करूँ
ज़ख़्म ही ज़ख़्म मोहब्बत हैं मिरे दिल में अगर
सोचता हूँ कि बयाँ कैसे ये रूदाद करूँ
दिल अज़ल ही से है माइल जो हसीनों की तरफ़
क्यूँ मोहब्बत के घरोंदों को मैं बर्बाद करूँ
चर्ख़-ए-बे-मेहर से कम तू भी नहीं है ज़ालिम
आशियाँ कैसे हवाले तिरे सय्याद करूँ
कैसी मुश्किल सी है मुश्किल ये न पूछूँ मुझ से
किस तरह ज़ेहन-ए-परेशाँ को मैं आज़ाद करूँ
शब की तन्हाई में अक्सर यही सोचा है 'नज़ीर'
याद कर कर के तुझे दिल को तो अब शाद करूँ
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