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ग़म है खाने को अश्क पीने को - नज़ीर रामपुरी कविता - Darsaal

ग़म है खाने को अश्क पीने को

ग़म है खाने को अश्क पीने को

ये भी कम क्या है अपने जीने को

दिल में हरगिज़ न रखिए कीने को

और भी ग़म बहुत हैं जीने को

अपने दिल में छुपाए फिरता हूँ

मैं तिरे दर्द के दफ़ीने को

जिस को कहती है अश्क-ए-ग़म दुनिया

कोई देखे तो इस नगीने को

मौज-दर-मौज आ रही है सदा

डूब जाने दो अब सफ़ीने को

लाग में है लगाओ का अंदाज़

कौन समझेगा इस क़रीने को

सोचता हूँ कि किस से दूँ तश्बीह

इस जबीं पर हसीं पसीने को

इश्क़ ने कर दिया है मुझ को निहाल

देखिए दर्द के ख़ज़ीने को

शिकवा बर-हक़ 'नज़ीर' ये सोचो

ठेस पहुँचेगी आबगीने को

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In Hindi By Famous Poet Nazeer Rampuri. is written by Nazeer Rampuri. Complete Poem in Hindi by Nazeer Rampuri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.