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बस और क्या कहूँ इस सिलसिला में तौबा है - नज़ीर मुज़फ़्फ़रपुरी कविता - Darsaal

बस और क्या कहूँ इस सिलसिला में तौबा है

बस और क्या कहूँ इस सिलसिला में तौबा है

मुझे जो पहुँचा है दुख दोस्तों से पहुँचा है

मिरे वजूद से हैरत में है मुफ़स्सिर-ए-अक़्ल

वो राज़ हूँ जो न मस्तूर है न इफ़्शा है

मुझे हयात से है इस लिए भी दिलचस्पी

ये एक दिन का नहीं उम्र-भर का सौदा है

वो तेरे लुत्फ़-ए-तबस्सुम की नग़्मगी ऐ दोस्त

कि जैसे क़ौस-ए-क़ुज़ह पर सितार बजता है

ये ज़िंदगानी इबारत ख़लिश से है या'नी

ख़लिश जो है तो चमन है नहीं तो सहरा है

हैं तेरी इश्वा-गरी के ये मुख़्तलिफ़ पहलू

कलीसा क्या है हरम क्या है बुत-कदा क्या है

'नज़ीर' क़िस्सा-ए-ज़ख़्म-ए-निहाँ कहूँ किस से

ये दास्तान-ए-अलम सख़्त रूह-फ़र्सा है

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In Hindi By Famous Poet Nazeer Muzaffarpuri. is written by Nazeer Muzaffarpuri. Complete Poem in Hindi by Nazeer Muzaffarpuri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.