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उमँड रही हैं घटाएँ कि ज़ुल्फ़ बरहम है - नज़ीर मोहसिन कविता - Darsaal

उमँड रही हैं घटाएँ कि ज़ुल्फ़ बरहम है

उमँड रही हैं घटाएँ कि ज़ुल्फ़ बरहम है

छलक रहा है जो ख़ुम है कि आँख पुर-नम है

नशात-ए-ज़ीस्त मयस्सर नहीं तो क्या शिकवा

मुझे हयात से बढ़ कर हयात का ग़म है

फिर आज गर्दिश-ए-दौराँ से मात खाई है

बिसात-ए-दिल ही उलट दो कि हौसला कम है

ठहर न जाए कहीं नब्ज़-ए-गर्दिश-ए-दौराँ

तिरी निगाह-ए-करम का कुछ और आलम है

न शोर-ए-नग़्मा न रक़्स-ए-सुबू न ख़ंदा-ए-गुल

चमन में आज निगार-ए-चमन का मातम है

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In Hindi By Famous Poet Nazeer Mohsin. is written by Nazeer Mohsin. Complete Poem in Hindi by Nazeer Mohsin. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.