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फ़ज़ा-ए-लाला-ओ-गुल में वो ताज़गी न रही - नज़ीर मोहसिन कविता - Darsaal

फ़ज़ा-ए-लाला-ओ-गुल में वो ताज़गी न रही

फ़ज़ा-ए-लाला-ओ-गुल में वो ताज़गी न रही

वो क्या गए कि बहारों में दिलकशी न रही

क़दम क़दम पे हैं छाए हुए अँधेरे से

लहू के दीप जलाओ कि रौशनी न रही

मिज़ाज-ए-इश्क़ ने आदाब-ए-हुस्न अपनाए

दयार-ए-इश्क़ में वो रस्म-ए-बंदगी न रही

मिरे ख़ुलूस-ए-वफ़ा से अबस शिकायत है

निगाह-ए-नाज़ में भी शानदर-ए-दिलबरी न रही

चमक उठा है तिरी याद में हरीम-ए-ख़याल

शब-ए-फ़िराक़ फ़ज़ाओं में तीरगी न रही

तिरी निगाह-ए-करम ज़िंदगी सँवार गई

जहान-ए-दिल में वो पहली सी बरहमी न रही

चलो कि हल्क़ा-ए-दार-ओ-रसन की बात करें

फ़साना-ए-गुल-ओ-बुलबुल में दिलकशी न रही

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In Hindi By Famous Poet Nazeer Mohsin. is written by Nazeer Mohsin. Complete Poem in Hindi by Nazeer Mohsin. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.