पेशानी पे सय्याल नगीना क्यूँ है
गिर्दाब में हुस्न का सफ़ीना क्यूँ है
नादिम हूँ मुझे अपनी नदामत तस्लीम
ये आप के माथे पे पसीना क्यूँ है
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Gulzar
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Wasi Shah
Habib Jalib
Anwar Masood
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
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दूसरों से कब तलक हम प्यास का शिकवा करें
करम जब आम है साक़ी तो फिर तख़सीस ये कैसी
तूफ़ाँ से थपेड़ों के सहारे निकल आए
हैं यूँ मस्त आँखों में डोरे गुलाबी
गंगा के किनारे
बेबादा भी ग़म से दूर हो जाता हूँ
इस वक़्त ग़ज़ल की बात न कर
दीवाली और दीवाली मिलन
आह गाँधी
मस्जिद-ओ-मंदिर कलीसा सब में जाना चाहिए
छब्बीस जनवरी
ये करें और वो करें ऐसा करें वैसा करें