किस तरह से आई है जमाही तौबा
तौबा तौबा तौबा अरे तबाही तौबा
दो घूँट भी इस वक़्त है मिलना दुश्वार
ये क़हत अगर है तो इलाही तौबा
Jaun Eliya
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एक दीवाने को जो आए हैं समझाने कई
लिल्लाह मिरी सोज़िश-ए-पैहम को न छेड़
हम उन के दर पे न जाते तो और क्या करते
मिरा मन है शहर-ए-गोकुल की तरह से साफ़-सुथरा
आस ही से दिल में पैदा ज़िंदगी होने लगी
एक झोंका इस तरह ज़ंजीर-ए-दर खड़का गया
दिल की उजड़ी हुई हालत पे न जाए कोई
मिरे टूटे हुए दिल की सदा से खेलने वाले
छब्बीस जनवरी
रास्ता रोके हुए कब से खड़ी है दुनिया
इस वक़्त ग़ज़ल की बात न कर