हर साँस में इक हश्र बपा है वाइ'ज़
दुनिया ही में उक़्बा का मज़ा है वाइ'ज़
आए हो तुम इक रोज़ जज़ा को ले कर
हर रोज़ यहाँ रोज़-ए-जज़ा है वाइ'ज़
Rahat Indori
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कितनी शर्मीली लजीली है हवा बरसात की
अंधेरा माँगने आया था रौशनी की भीक
हम उन के दर पे न जाते तो और क्या करते
दीपावली
इस वक़्त ग़ज़ल की बात न कर
छब्बीस जनवरी
होली
जब से वो कह के गए हैं कि अभी आते हैं
रास्ता रोके हुए कब से खड़ी है दुनिया
रुख़्सत अभी ज़ुल्मतों का डेरा कर दूँ
हैं यूँ मस्त आँखों में डोरे गुलाबी
साहिल पे अगर मिरा सफ़ीना आ जाए