मिरे टूटे हुए दिल की सदा से खेलने वाले
दुआ अपने लिए माँग अब दुआ से खेलने वाले
तुझे भी एक दिन एहसास-ए-तन्हाई रुला देगा
अकेले बैठ कर अपनी अदा से खेलने वाले
Allama Iqbal
Habib Jalib
Rahat Indori
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मिरा मन है शहर-ए-गोकुल की तरह से साफ़-सुथरा
फ़िरक़ा-परस्ती का चैलन्ज
ज़रा दम तो ले ले तूफ़ाँ कि थका है रास्ते का
जब से वो कह के गए हैं कि अभी आते हैं
मिरी बे-ज़बान आँखों से गिरे हैं चंद क़तरे
ये इनायतें ग़ज़ब की ये बला की मेहरबानी
रुख़्सत अभी ज़ुल्मतों का डेरा कर दूँ
निगाह ओ दिल भी क़दम की तरह मिला के चले
मस्जिद-ओ-मंदिर कलीसा सब में जाना चाहिए
इक रात में सौ बार जला और बुझा हूँ
आह गाँधी