ऐ दाना-हा-ए-गंदुम देखो न मुस्कुरा के
मैं फिर पहुँच रहा हूँ दुनिया की ख़ाक उड़ा के
क्यूँ औज-ए-आसमाँ से फेंका गया ज़मीं पर
क्या मुतमइन नहीं है महफ़िल से भी उठा के
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Gulzar
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(2053) Peoples Rate This
वो आइना हूँ जो कभी कमरे में सजा था
सुना है कि उन से मुलाक़ात होगी
एक दीवाने को जो आए हैं समझाने कई
मिरे टूटे हुए दिल की सदा से खेलने वाले
आस ही से दिल में पैदा ज़िंदगी होने लगी
दिन ढला जाता है शाम आती है घबराता हूँ मैं
पेशानी पे सय्याल नगीना क्यूँ है
एक झोंका इस तरह ज़ंजीर-ए-दर खड़का गया
मस्जिद-ओ-मंदिर कलीसा सब में जाना चाहिए
अंधेरा माँगने आया था रौशनी की भीक
ये इनायतें ग़ज़ब की ये बला की मेहरबानी
हुए मुझ से जिस घड़ी तुम जुदा तुम्हें याद हो कि न याद हो