वो आइना हूँ जो कभी कमरे में सजा था
अब गिर के जो टूटा हूँ तो रस्ते में पड़ा हूँ
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आस ही से दिल में पैदा ज़िंदगी होने लगी
हम उन के दर पे न जाते तो और क्या करते
एक दीवाने को जो आए हैं समझाने कई
दीवाली और दीवाली मिलन
इक रात में सौ बार जला और बुझा हूँ
दिल की उजड़ी हुई हालत पे न जाए कोई
ज़रा दम तो ले ले तूफ़ाँ कि थका है रास्ते का
जब से वो कह के गए हैं कि अभी आते हैं
यहाँ की फ़िक्र वहाँ का ख़याल रक्खा है
एक झोंका इस तरह ज़ंजीर-ए-दर खड़का गया
छब्बीस जनवरी