उम्र भर की बात बिगड़ी इक ज़रा सी बात में
एक लम्हा ज़िंदगी भर की कमाई खा गया
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दूसरों से कब तलक हम प्यास का शिकवा करें
दीवाली और दीवाली मिलन
दीपावली
बढ़ता हुआ हौसला न टूटे दिल का
और तो कुछ न हुआ पी के बहक जाने से
रुख़्सत अभी ज़ुल्मतों का डेरा कर दूँ
हिन्द के मय-ख़ाने से इक साथ उठे दो बादा-ख़्वार
हम उन के दर पे न जाते तो और क्या करते
निगाह ओ दिल भी क़दम की तरह मिला के चले
मय-ख़्वारों से जब दूर नज़र आएगी
वो आइना हूँ जो कभी कमरे में सजा था