जी में आता है कि दें पर्दे से पर्दे का जवाब
हम से वो पर्दा करें दुनिया से हम पर्दा करें
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दिन ढला जाता है शाम आती है घबराता हूँ मैं
ये जल्वा-गह-ए-ख़ास है कुछ आम नहीं है
जब से वो कह के गए हैं कि अभी आते हैं
दीवाली
आह गाँधी
बढ़ता हुआ हौसला न टूटे दिल का
अक्सर इस तरह से भी रात बसर होती है
साहिल पे अगर मिरा सफ़ीना आ जाए
मय-ख़्वारों से जब दूर नज़र आएगी
हिन्द के मय-ख़ाने से इक साथ उठे दो बादा-ख़्वार
दिल की उजड़ी हुई हालत पे न जाए कोई
पेशानी पे सय्याल नगीना क्यूँ है