एक दीवाने को जो आए हैं समझाने कई
पहले मैं दीवाना था और अब हैं दीवाने कई
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ये करें और वो करें ऐसा करें वैसा करें
मिरे टूटे हुए दिल की सदा से खेलने वाले
तूफ़ाँ से थपेड़ों के सहारे निकल आए
खुलती हैं वो मस्त आँखें हंगाम-ए-सहर ऐसे
हर साँस में इक हश्र बपा है वाइ'ज़
गंगा के किनारे
मिरी बे-ज़बान आँखों से गिरे हैं चंद क़तरे
ये इनायतें ग़ज़ब की ये बला की मेहरबानी
हिन्द के मय-ख़ाने से इक साथ उठे दो बादा-ख़्वार
एक झोंका इस तरह ज़ंजीर-ए-दर खड़का गया
लिल्लाह मिरी सोज़िश-ए-पैहम को न छेड़
सुना है कि उन से मुलाक़ात होगी