आस ही से दिल में पैदा ज़िंदगी होने लगी
शम्अ जलने भी न पाई रौशनी होने लगी
Allama Iqbal
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हिन्द के मय-ख़ाने से इक साथ उठे दो बादा-ख़्वार
तुम नैन के दोनों पट मेरे लिए वा रखना
तूफ़ाँ से थपेड़ों के सहारे निकल आए
वो जो बिछड़े मौत याद आने लगी
सुना है कि उन से मुलाक़ात होगी
बद-गुमानी को बढ़ा कर तुम ने ये क्या कर दिया
हैं यूँ मस्त आँखों में डोरे गुलाबी
दीवाली
यहाँ की फ़िक्र वहाँ का ख़याल रक्खा है
एक झोंका इस तरह ज़ंजीर-ए-दर खड़का गया
दीवाली और दीवाली मिलन
जी में आता है कि दें पर्दे से पर्दे का जवाब