अक्सर इस तरह से भी रात बसर होती है
अक्सर इस तरह से भी रात बसर होती है
रात की रात नज़र जानिब-ए-दर होती है
जिस से दुनिया-ए-सुकूँ ज़ेर-ओ-ज़बर होती है
वो मुलाक़ात सर-ए-राहगुज़र होती है
ठेस लगती है जहाँ इश्क़ की ख़ुद्दारी को
ज़िंदगी बढ़ के वहीं सीना-सिपर होती है
ये सपेदी-ए-सहर है कि सितारों का कफ़न
रात दम तोड़ रही है कि सहर होती है
अपने दामन से तो मैं पोंछ रहा हूँ आँसू
दामन-ए-दोस्त की तौहीन मगर होती है
आप आराइश-ए-गेसू में लगे हैं नाहक़
फ़ातेह-ए-दिल तो मोहब्बत की नज़र होती है
रास्ता रोके हुए कब से खड़ी है दुनिया
न इधर होती है ज़ालिम न उधर होती है
तू नज़र भर के सर-ए-बज़्म न देख उन को 'नज़ीर'
इस से रुस्वाई-ए-तहज़ीब-ए-नज़र होती है
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