Ghazals of Nazeer Banarasi
नाम | नज़ीर बनारसी |
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अंग्रेज़ी नाम | Nazeer Banarasi |
जन्म की तारीख | 1909 |
मौत की तिथि | 1996 |
ये करें और वो करें ऐसा करें वैसा करें
ये जल्वा-गह-ए-ख़ास है कुछ आम नहीं है
ये इनायतें ग़ज़ब की ये बला की मेहरबानी
यहाँ की फ़िक्र वहाँ का ख़याल रक्खा है
वो जो बिछड़े मौत याद आने लगी
तुम नैन के दोनों पट मेरे लिए वा रखना
तूफ़ाँ से थपेड़ों के सहारे निकल आए
सुना है कि उन से मुलाक़ात होगी
निगाह ओ दिल भी क़दम की तरह मिला के चले
मस्जिद-ओ-मंदिर कलीसा सब में जाना चाहिए
कितनी शर्मीली लजीली है हवा बरसात की
जो ग़ज़ल महलों से चल कर झोंपड़ों तक आ गई
जब से वो कह के गए हैं कि अभी आते हैं
हम उन के दर पे न जाते तो और क्या करते
हुए मुझ से जिस घड़ी तुम जुदा तुम्हें याद हो कि न याद हो
हैं यूँ मस्त आँखों में डोरे गुलाबी
इक रात में सौ बार जला और बुझा हूँ
एक झोंका इस तरह ज़ंजीर-ए-दर खड़का गया
दिन ढला जाता है शाम आती है घबराता हूँ मैं
बद-गुमानी को बढ़ा कर तुम ने ये क्या कर दिया
और तो कुछ न हुआ पी के बहक जाने से
अक्सर इस तरह से भी रात बसर होती है
आस ही से दिल में पैदा ज़िंदगी होने लगी