साथ चलना है तो फिर छोड़ दे सारी दुनिया
चल न पाए तो मुझे लौट के घर जाने दे
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जब ज़बानों में यहाँ सोने के ताले पड़ गए
धुआँ बना के फ़ज़ा में उड़ा दिया मुझ को
रोज़ ख़्वाबों में नए रंग भरा करता था
मैं एक ज़र्रा बुलंदी को छूने निकला था
खड़ा हूँ आज भी रोटी के चार हर्फ़ लिए
आग दुनिया की लगाई हुई बुझ जाएगी
आ गया याद उन्हें अपने किसी ग़म का हिसाब
मैं एक क़र्ज़ हूँ सर से उतार दे मुझ को
याद नहीं क्या क्या देखा था सारे मंज़र भूल गए
अपनी आँखों के समुंदर में उतर जाने दे
ख़ूब गए परदेस कि अपने दीवार-ओ-दर भूल गए