मैं ने दुनिया छोड़ दी लेकिन मिरा मुर्दा बदन
एक उलझन की तरह क़ातिल की नज़रों में रहा
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मैं एक ज़र्रा बुलंदी को छूने निकला था
साथ चलना है तो फिर छोड़ दे सारी दुनिया
ता उम्र फिर न होगी उजालों की आरज़ू
धुआँ बना के फ़ज़ा में उड़ा दिया मुझ को
ज़ख़्म कितने तिरी चाहत से मिले हैं मुझ को
आग दुनिया की लगाई हुई बुझ जाएगी
जब ज़बानों में यहाँ सोने के ताले पड़ गए
इस लिए चल न सका कोई भी ख़ंजर मुझ पर
ये हैं तैराक मगर हाल ये इन के देखे
मैं एक क़र्ज़ हूँ सर से उतार दे मुझ को
खड़ा हूँ आज भी रोटी के चार हर्फ़ लिए