आग दुनिया की लगाई हुई बुझ जाएगी
कोई आँसू मिरे दामन पे बिखर जाने दे
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ख़ूब गए परदेस कि अपने दीवार-ओ-दर भूल गए
साथ चलना है तो फिर छोड़ दे सारी दुनिया
ता उम्र फिर न होगी उजालों की आरज़ू
जब ज़बानों में यहाँ सोने के ताले पड़ गए
रोज़ ख़्वाबों में नए रंग भरा करता था
ज़ख़्म कितने तिरी चाहत से मिले हैं मुझ को
इस लिए चल न सका कोई भी ख़ंजर मुझ पर
मैं एक ज़र्रा बुलंदी को छूने निकला था
मैं ने दुनिया छोड़ दी लेकिन मिरा मुर्दा बदन
अपनी आँखों के समुंदर में उतर जाने दे