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जब न आने की क़सम आप ने खा रक्खी थी - नज़ीर बाक़री कविता - Darsaal

जब न आने की क़सम आप ने खा रक्खी थी

जब न आने की क़सम आप ने खा रक्खी थी

मैं ने फिर किस के लिए शम्अ जला रक्खी थी

रख दिया उन को भी झोली में सितमगारों की

मैं ने जिन हाथों से बुनियाद-ए-वफ़ा रक्खी थी

जानता कौन भला कैसे किसी के हालात

वक़्त ने बीच में दीवार उठा रक्खी थी

इस लिए चल न सका कोई भी ख़ंजर मुझ पर

मेरी शह-रग पे मिरी माँ की दुआ रक्खी थी

किस लिए मुझ को न सूली पे चढ़ाया जाता

मुंसिफ़ों ने ये मिरे सच की सज़ा रक्खी थी

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In Hindi By Famous Poet Nazeer Baaqri. is written by Nazeer Baaqri. Complete Poem in Hindi by Nazeer Baaqri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.