नज़ीर बाक़री कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का नज़ीर बाक़री
नाम | नज़ीर बाक़री |
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अंग्रेज़ी नाम | Nazeer Baaqri |
ज़ख़्म कितने तिरी चाहत से मिले हैं मुझ को
ता उम्र फिर न होगी उजालों की आरज़ू
साथ चलना है तो फिर छोड़ दे सारी दुनिया
मैं ने दुनिया छोड़ दी लेकिन मिरा मुर्दा बदन
मैं एक ज़र्रा बुलंदी को छूने निकला था
किसी ने हाथ बढ़ाया है दोस्ती के लिए
ख़ूब गए परदेस कि अपने दीवार-ओ-दर भूल गए
खड़ा हूँ आज भी रोटी के चार हर्फ़ लिए
इस लिए चल न सका कोई भी ख़ंजर मुझ पर
अपनी आँखों के समुंदर में उतर जाने दे
आग दुनिया की लगाई हुई बुझ जाएगी
आ गया याद उन्हें अपने किसी ग़म का हिसाब
ये हैं तैराक मगर हाल ये इन के देखे
याद नहीं क्या क्या देखा था सारे मंज़र भूल गए
रोज़ ख़्वाबों में नए रंग भरा करता था
मैं एक क़र्ज़ हूँ सर से उतार दे मुझ को
कुछ देर सादगी के तसव्वुर से हट के देख
कौन पहचाने मुझे शब भर तो ख़तरों में रहा
जब ज़बानों में यहाँ सोने के ताले पड़ गए
जब न आने की क़सम आप ने खा रक्खी थी
धुआँ बना के फ़ज़ा में उड़ा दिया मुझ को
अपनी आँखों के समुंदर में उतर जाने दे