थी छोटी उस के मुखड़े पर कल ज़ुल्फ़-ए-मुसलसल और तरह
थी छोटी उस के मुखड़े पर कल ज़ुल्फ़-ए-मुसलसल और तरह
फिर देखा आज तो उस गुल के थे काकुल के बल और तरह
वो देख झिड़कता है हम को कर ग़ुस्सा हर दम और हमें
है चैन उसी के मिलने से ज़िन्हार नहीं कल और तरह
मालूम नहीं क्या बात कही ग़म्माज़ ने उस से जो हम से
थीं पहली बातें और नमत अब बोले है चंचल और तरह
दिल मुझ से उस के मिलने को कहता है तो उस के पास मुझे
जब ले पहुँचा था भेस बदल फिर अब के ले चल और तरह
है कितने दिनों से इश्क़ 'नज़ीर' उस यार का हम को जिस की हैं
सुब्ह और बिरन शाम और फबन आज और दुवश कल और तरह
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