शेवा-ए-नाज़ होश छल जाना
तर्ज़-ए-रफ़्तार दिल कुचल जाना
सफ़-ए-मिज़्गाँ के झोक से गिर कर
हम से कब हो सका सँभल जाना
उस ने आने कहा है सुब्ह ऐ अश्क
तू पलक पर न एक पल जाना
हम अभी मुंतज़िर हैं आने के
दिन ढलेगा तो तू भी ढल जाना
दिल ने सीखा है बे-तरह से 'नज़ीर'
बिन कहे बिन सुने निकल जाना