सफ़ाई उस की झलकती है गोरे सीने में
सफ़ाई उस की झलकती है गोरे सीने में
चमक कहाँ है ये अल्मास के नगीने में
न तूई है न कनारी न गोखरू तिस पर
सजी है शोख़ ने अंगिया बुनत के मीने में
जो पूछा मैं ''कहाँ थी'' तू हँस के यूँ बोली
''मैं लग रही थी उस अंगिया मुई के सीने में''
पड़ा जो हाथ मिरा सीने पर तो हाथ झटक
पुकारी! ''आग लगे ऊई इस क़रीने में''
जो ऐसा ही है तो अब हम न रोज़ आवेंगे
कभू जो आए तो हफ़्ते में या महीने में
कभू मटक कभी बस बस कभू पियाला पटक
दिमाग़ करती थी क्या क्या शराब पीने में
चढ़ी जो दौड़ के कोठे पे वो परी इक बार
तो मैं ने जा लिया उस को उधर के ज़ीने में
वो पहना करती थी अंगिया जो सुर्ख़ लाही की
लिपट के तन से वो तर हो गई पसीने में
ये सुर्ख़ अंगिया जो देखी है उस परी की 'नज़ीर'
मुझे तो आग सी कुछ लग रही है सीने में
(322) Peoples Rate This