नामा-ए-यार जो सहर पहुँचा
ख़ुश-रक़म ख़ूब वक़्त पर पहुँचा
था लिखा यूँ कि ऐ 'नज़ीर' अब तक
किस सबब तू नहीं इधर पहुँचा
मैं ने उस को कहा कि ऐ महबूब
इस लिए मैं नहीं उधर पहुँचा
यूँ सुना था तुम आपी आते हो
इस में नामा ये पुर-गुहर पहुँचा
मुझ को पहुँचा ही जानो अपने पास
आज-कल शाम या सहर पहुँचा