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लो न हँस हँस के तुम अग़्यार से गुल-दस्तों से - नज़ीर अकबराबादी कविता - Darsaal

लो न हँस हँस के तुम अग़्यार से गुल-दस्तों से

लो न हँस हँस के तुम अग़्यार से गुल-दस्तों से

इतनी ज़िद भी न रखो अपने जिगर-ख़स्तों से

फ़ुंदक़ें बज़्म में देख उस के सर-अंगुश्तों से

रिश्ता-ए-रब्त ने ली राह कफ़-ए-दस्तों से

रू-ब-रू होवे जो चश्मान-ए-बुताँ से ऐ दिल

डरते रहना ही मुनासिब है सियह-मस्तों से

दस्त-ए-सय्याद से छूटे तो उछल पै-दर-पै

वर्ना क्या फ़ाएदा ऐ आहु-ए-दिल जस्तों से

पेश जाती नहीं हरगिज़ कोई तदबीर 'नज़ीर'

काम जब आन के पड़ता है ज़बरदस्तों से

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In Hindi By Famous Poet Nazeer Akbarabadi. is written by Nazeer Akbarabadi. Complete Poem in Hindi by Nazeer Akbarabadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.