Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_398b2683f74dff406e0d09351d92eb34, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
गुलज़ार है दाग़ों से यहाँ तन-बदन अपना - नज़ीर अकबराबादी कविता - Darsaal

गुलज़ार है दाग़ों से यहाँ तन-बदन अपना

गुलज़ार है दाग़ों से यहाँ तन-बदन अपना

कुछ ख़ौफ़ ख़िज़ाँ का नहीं रखता चमन अपना

अश्कों के तसलसुल ने छुपाया तन-ए-उर्यां

ये आब-ए-रवाँ का है नया पैरहन अपना

किस तरह बने ऐसे से इंसाफ़ तो है शर्त

ये वज़्अ मिरी देखो वो देखो चलन अपना

इंकार नहीं आप के घर चलने से मुझ को

मैं चलने को मौजूद जो छोड़ो चलन अपना

मस्कन का पता ख़ाना-ब-दोशों से न पूछो

जिस जा पे कि बस गिर रहे वो है वतन अपना

(280) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Nazeer Akbarabadi. is written by Nazeer Akbarabadi. Complete Poem in Hindi by Nazeer Akbarabadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.