चितवन में शरारत है और सीन भी चंचल है
चितवन में शरारत है और सीन भी चंचल है
काफ़िर तिरी नज़रों में कुछ और ही छल-बल है
बाला भी चमकता है जुगनू भी दमकता है
बध्धी की लिपट तिस पर तावीज़ की हैकल है
गोरा वो गला नाज़ुक और पेट मिलाई सा
सीने की सफ़ाई भी ऐसी गोया मख़मल है
वो हुस्न के गुलशन में मग़रूर न हो क्यूँ-कर
बढ़ती हुई डाली है उठती हुई कोंपल है
अंगिया वो ग़ज़ब जिस को मलमल ही करे दिल भी
क्या जाने कि शबनम है ननसुख है कि मलमल है
ये दो जो नए फल हैं सीने पे तिरे ज़ालिम
टुक हाथ लगाने दे जीने का यही फल है
उभरा हुआ वो सीना और जोश भरा जोबन
एक नाज़ का दरिया है इक हुस्न का बादल है
क्या कीजे बयाँ यारो चंचल की रुखावट का
हर बात में दुर दुर है हर आन में चल-चल है
ये वक़्त है ख़ल्वत का ऐ जान न कर कल कल
काफ़िर तिरी कल कल से अब जी मिरा बेकल है
कल मैं ने कहा उस से क्या दिल में ये आया जो
कंघी है न चोटी है मिस्सी है न काजल है
मालूम हुआ हम से रूठे हो तुम ऐ जानी
उल्टा ही दुपट्टे का मुखड़े पे ये आँचल है
ये सुन के लगी कहने रूठी तो नहीं तुझ से
पर क्या कहूँ दो दिन से कुछ दिल मिरा बेकल है
जिस दिन ही 'नज़ीर' आ कर वो शोख़ मिले हम से
हथ-फेर हैं बोसे हैं दिन रात की मल-दल है
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